Home Uncategorized जम्मू की धरती बनेगी कांग्रेस के बागियों की युद्धभूमि

जम्मू की धरती बनेगी कांग्रेस के बागियों की युद्धभूमि

by zadmin

सिब्बल,आनंद शर्मा,मनीष तिवारी,

हुड्डा करेंगे बगावत का झंडा बुलंद 

विशेष संवाददाता 

नई दिल्ली,26 फ़रवरी:. कांग्रेस  के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ( की राज्‍यसभा से विदाई के बाद कांग्रेस में एक बार फिर बगावत हो सकती है. हालांकि इस बार युद्धभूमि दिल्ली नहीं, बल्कि जम्मू होगी. क्योंकि लंबे समय बाद आजाद यहां जनसभाओं के लिए लौट रहे हैं. बीते साल अगस्त में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को पत्र लिखने वाले 23 नेताओं में से कुछ लोग एक बार फिर एकत्र हो रहे हैं. दरअसल, जम्मू आजाद की कर्मभूमि रही है और इस जगह को पार्टी में बगावत के लिए एकदम मुफीद माना जा रहा है.

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इस बार भी आजाद अकेले नहीं होंगे. उन्हें 6 दूसरे बागियों कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, विवेक तन्खा, अखिलेश प्रसाद सिंह, मनीष तिवारी और भूपिंदर हुड्डा का साथ मिलेगा. इस मुलाकात से एक बात तो साफ है कि ये पार्टी के सामने हिम्मत और एकता का संदेश होगा. आजाद की विदाई के बाद उनकी पार्टी ने सहयोगियों के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था कि उन्हें दूसरे राज्य से राज्यसभा सीट दे दी जाए. माना जाता है कि इस बात से आजाद और कई अन्य लोगों को बुरा लगा था. साथ ही कई जरूरी चुनाव के दौरान पार्टी किसी वरिष्ठ नेता की सलाह नहीं लेती है.
डीएमके के काम को अच्छी तरह से समझने वाले आजाद को सीट बंटवारे पर बातचीत के लिए नहीं भेजा गया. उनकी जगह रणदीप सुरजेवाला को तरजीह दी गई. इससे पार्टी समर्थन से खट्टर सरकार को गिराने की उम्मीद कर रहे भूपिंदर हुड्डा की नाराजगी बढ़ गई. माना जाता है कि हुड्डा विरोधी के तौर पर पहचाने जाने वाले सुरजेवाला और कुमारी शैलजा ने इस बात को खारिज कर दिया और राहुल गांधी ने उनकी बात मान ली.


जम्‍मू बनेगा मुख्‍य केंद्र 
यह माना जाता है कि आनंद शर्मा के राज्यसभा कार्यकाल में एक वर्ष का ही समय बचा है. उन्हें विपक्ष के नेता पद के लिए नजरअंदाज कर दिया गया. यह पद राहुल गांधी के करीबी मल्लिकार्जुन खड़गे को दे दिया गया. सूत्र बताते हैं कि बागी समूह के कुछ सदस्यों ने शर्मा को इस्तीफा देने की सलाह दे दी थी. हालांकि, ऐसा हुआ नहीं. तो अब क्या. जम्मू में होने वाले इस प्रदर्शन में दो बाते होंगी. पहली कि क्यों उनसे या वरिष्ठ नेताओं से चुनावी रणनीति को लेकर चर्चा नहीं की गई. दूसरा अध्यक्ष की गैर-मौजूदगी में फैसले कौन ले रहा था.

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